बिजली, पानी और महंगाई से साल भर जूझते दिल्लीवालों को अब दिल्ली में जुर्म के आंकड़े डरा रहे हैं. गुजरता साल जाते-जाते दिल्ली वालों को वो डरावना आंकड़ा दे गया है जिसे देख और सुन कर यकीन नहीं होता कि ये देश की राजधानी दिल्ली है. साल भर में दिल्ली में 100 फीसदी जुर्म बढ़ गया. 2000 से ज्यादा रेप, 550 से ज्यादा मर्डर, 6000 से ज्यादा लूट. ये आंकड़े हमारे नहीं हैं. बल्कि पिछले साल के जुर्म के हिसाब-किताब के साथ दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को मीडिया से मुखातिब होकर खुद इसकी जानकारी दी है.
1 जनवरी से 15 दिसंबर 2014 तक दिल्ली में हुए अपराधों में 561 मर्डर, 2069 रेप, 1282 छेड़ख़ानी के मामले, 6180 लूट के मामले और 6944 राह चलते झपटमारी के मामले शामिल हैं. यह ताकवर लोगों का दिल्ली है. देश का दरबार यहीं लगता है. देश चलाने वाले यहीं बसते हैं और देश की सबसे स्मार्ट पुलिस फोर्स का तमग़ा भी इसी शहर के पास है.
2069 रेप
16 दिसंबर 2012 हुआ तो अपनी इसी स्मार्ट पुलिस फोर्स ने दिल्लीवालों को दिलासा दिया कि महिलाओं की इज्जत के हिफाजत के लिए पूरी ताकत झोंक देंगे. पर फिर किसी और को निर्भया बनने नहीं देंगे. जिस साल निर्भया ने रुलाया था उस साल दिल्ली में 706 निर्भया की अस्मत गई थी. पता नही दिल्ली पुलिस ने कौन सा दिलासा दिया था कि 2013 में रेप का आंकड़ा 706 से सीधे 1636 जा पुहंचा. सोचा चलो वक्त लगता हैं चीजों को संभालने में. संभल जाएगा. पर गलत सोचा. क्य़ोंकि 201414 में तो सारे रिकार्ड ही टूट गए. रेप का आंकड़ा 2069 जा पहुंचा. यानी दिल्ली में हर रोज़ औसतन 5 से 6 रेप के मामले होते हैं.
561 मर्डर
दिल्ली में कत्ल की हर वारदात के बाद कुछ ऐसा ही मंज़र होता है. बेवक्त मौत परिवारों को तोड़ जाता है. दिल्ली पुलिस ने वादा किया था कि वो इन मातमी चीखों को भी कंट्रोल करेगी. पर हुआ क्या? 2013 में दिल्ली ने 486 लोगों का खून देखा था. 14 में ये आंकड़ा 561 जा पहुंचा.
ये तो बानगी भर है. वर्ना एक सड़क हादसा छोड़ दें तो डकैती, लूट, छेड़खानी. झपटमारी, चोरी, वाहन चोरी बस आप जुर्मों के नाम याद कीजिए डरवाने आंकड़े हाजिर हैं. आईपीससी के जुर्मों की जो लिस्ट है उस लिस्ट हर चीज़ बढ़ी है. कुल मिला कर दिल्ली में अपराध का ग्राफ साल 13 के मुकाबले 14 में 183 फीसदी बढ़ गया है.
क्यों बढ़ रहा अपराध?
अब सवाल ये है कि आखिर दिल्ली में जुर्म का ग्राफ बढ़ क्यों रहा है? क्या दिल्ली पुलिस अपनी ड्यूटी करने में नाकाम रही है? क्या मुजरिमों के दिलों से दिल्ली पुलिस का खौफ जाता रहा है? क्या दिल्ली की बढ़ती आबादी क्राइम के बढ़ते ग्राफ के लिए जिम्मेदार है? या फिर फ्री रजिस्ट्रेशन यानी हर मामले में ईमानदारी से एफआईआर दर्ज करने के चलते ऐसा हुआ है?
दिल्ली के कमिश्नर बस्सी कहते हैं कि इसकी वजह ये है कि पुलिस अब ईमानदारी से एफआईआऱ दर्ज करती है इसीलिए आंकड़े बढ़ गए. पर सवाल ये है कि जब जुर्म होता है तभी तो एफआईआर दर्ज होती है. फिर क्या ये दलील बचकानी नहीं है?
FIR दर्ज करने में ईमानदारी से बढ़े आंकड़े?
खामखा हम सब पिछले दो साल से दिल्ली पुलिस को लेकर चीख रहे थे. उनकी कमियों का रोना रो रहे थे. उनकी काहिली पर गुस्सा जता रहे थे. जबकि सच तो आज कमिश्नर साहब ने बोला. एक ऐसा सच जो किसी की भी आंखें खोल दे. सच ये कि दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ और बाकी अपराध का ग्राफ इसिलए बढ़ा है क्योंकि पुलिस अब ईमानदारी से ऐसे मामले दर्ज करती है. यानी दिल्ली में रेप, मर्डर या छेड़खानी के मामले पुलिस के निकम्मेपन की वजह से नहीं बढ़े. ना ही इसमें पुलिस की कोई खामी है. खामी तो उन दरिंदों की है जो रेप और मर्डर करते हैं. पुलिस में कहां कोई खामी है. वो तो रेप के बाद ईमानदारी से एफआईआऱ दर्ज करती है.
पर कमिश्नर साहब. बस इतना बता दीजिए कि आपकी पुलिस का काम क्या सिर्फ एफआईआऱ दर्ज करना भर है? अगर सिर्फ एफआईआर के आंकड़ों की वजह से दिल्ली में रेप या बाकी जुर्म बढ़ रहे हैं तो तो फिर आपकी इतनी भारी-भरकम पुलिस फोर्स का क्या काम? क्यों है ये पुलिस? किस काम के लिए है? दरिंदे दरिंदगी दिखाएं और पुलिस उनकी दरिंदगी की बस रिपोर्ट लिखती रहे? क्या पुलिस का काम क्राइम रोकना नहीं है? क्या पुलिस का काम रेप रोकना नहीं है?
आप ही कह रहे हैं जुर्म के आंकड़े फ्री रजिस्ट्रेशन की वजह से बढ़ रहे हैं. तो क्या एफआईआपर यूंही लिख लिए जाते है? जाहिर है जब जुर्म होता है तभी एफआईआऱ दर्ज होता है. अगर आपकी पुलिस जुर्म होने से पहले ही उसे रोक दे तो एफआईआऱ लिखने की नौबत ही कहां आएगी? और वैसे भी पुलिस का काम जुर्म रोकना है ना कि ये कह कर अपना पल्ला झाड़ना कि हम ईमानदारी से एफआईआर दर्ज करते हैं इसलिए क्राइम के आंकड़े बढ़ रहे हैं. साल भर में सौ फीसदी क्राइम बढ़ जाना किसी भी शहर और उस शहर में रहनेवालों के लिए फिक्र की बात है कमिश्नर साहब|
Source: http://goo.gl/dLNoFk
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